पुरुष जितने जोर से “हँस” सकता है उतने जोर से “रो” नहीं सकता
पुरुष जितने जोर से “हँस” सकता है उतने जोर से “रो” नहीं सकता और स्त्री जितने जीर से “रो” सकती है उतने जोर से “हँस’ नहीं सकती, पुरुष और स्त्री में बराबरी नैतिकता के आधार पर नहीं, दोनों की भावनाओं की व्यक्तता के आधार पर होनी चाहिए, भावनाएं ज़ब अंकुश रहित होंगी तब दोनों अपने आप समानता को प्राप्त हो जायेंगे !!