पुरुष का दर्द
पुरुष का दर्द सुना नहीं जाता है।
समझा नहीं जाता।
मां के रुप में,बहन के रूप में उसके दर्द को समझा जाता है आज भी पुरुष के नजर में परम पवित्र मां,बहन हीहोती है।
पत्नी के घर आते ही थोड़ी खुशी तो ग़म ही ज्यादा उसको हर पल मिलता है।
हर एक कमी को बढा – चढ़ा कर दिखाती है
।उसकी पत्नी औरसबसे ज्यादा कमी तो पति के मां में बहन में ही नजर आती है।
अपने तो सावित्री बन जाती है। शादी से पहले लड़के का घर होता है।
शादी के बाद साली बहन, साला भाई
सब खुशी पत्नी के बस में आ जाती है।
बस अब बेचारा बन जी ए तो ठीक है। नहीं तो घर आखाड़ा बन जाता है।
जो कसर है जेठ सास और साडू निकाल लेता हैं -डॉक्टर सीमा कुमारी बिहार भागलपुर दिनांक-10-6-022कीमौलिक, स्वरचित रचना जिसे आज प्रकाशित कर रही है।