*”पुरुषोत्तम मास”*
“पुरुषोत्तम मास”
बारह महीनों का अलग स्वामी विहीन हो ,
मलमास अधिमास पुरुषोत्तम मास कहलाया।
श्री हरि विष्णु जी के पास गोलोक में जाके ,
अपना हाल दुखड़ा सुना बतलाया।
भक्त वत्सल श्री हरि के साथ में,
करुणा सिंधु से मन की व्यथा बताया।
विष्णु जी से वरदान पाकर ही ,दिव्य गुणों से पुरुषोत्तम मास कहाया।
तीन वर्षों के अंतराल में उत्पत्ति हुई ,
अधिमास मलमास पुरुषोत्तम मास कहलाया।
जप तप दान पुण्य आराधना से,
अनंत पुण्यों का फल कमाया।
भगवत गीता ,राम कथा श्रवण पाठ करने से,
विष्णु उपासना पूजन का फल पाया ।
सूर्य संक्रांति तीन वर्ष में स्वामी विहीन हो ,
पुरुषोत्तम मास मलमास कहलाया।
मंगल कार्य शुभ कार्यो को वर्जित कर ,
दान धर्म पूजन आराधना ध्यान साधना में मन लीन हो सुख पाया।
यज्ञ हवन सुबह स्नान तीर्थों का पुण्य लाभ ,
सौ गुना फल मिलता शुभदायक फल पाया।
अधिमास अति पवित्र पावन ,तुलसी पूजन होय।
सदा सुहागिन स्त्रियां नित्य जल सिचिंत करती ,
घर आँगन तुलसी परिक्रमा दीपदान नित होय।
राम कथा ,विष्णु कथा श्रवण कर ,धार्मिक महत्व फल पाया।
धर्म कर्म से मुक्ति पाने को ,वस्त्र दान ,भगवत गीता दान दीपदान से पुण्य फल पा जाता।
प्रेम भक्ति से सुमिरन प्रभु को ,विष्णु लक्ष्मी पूजन पुरुषोत्तम मास कहलाया।
वैदिक मंत्र उच्चारण अनुष्ठानों से ,चेतन शक्ति जागृत कराता।
अपूज्य व संक्रांति से वर्जित लज्जित होकर,
तिरस्कृत हो बैकुंठ लोक पहुँच विष्णु गोलोक धाम पहुंचाया।
समुद्र तट पर लेटे हुए हाथों में सुदर्शन चक्र ले ,
लक्ष्मी जी संग विराजमान हो भक्तों को भक्ति ज्ञान मार्ग पर चलाया।
सभी भक्तगण श्रद्धा भक्ति से ,पूजन अर्चना कर ,
भक्ति में लीन होकर पुरुषोत्तम मास के गुण गाया।
जय श्री कृष्णा राधे राधे
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ।
“ॐ नमो नारायण”
शशिकला व्यास ✍️