पुरानी यादें (भाग 01) श्रंगार छंद
पुरानी याद नये संदर्भ
श्रृंगार छंद 16
अंत में गुरू लघु
या लघु गुरू
हास्य कवि प्यारे गुरू प्रसाद।
सभी से न्यारे गुरू प्रसाद।।
छंद नभ तारे गुरू प्रसाद।
भाग के मारे गुरू प्रसाद।।
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मिले न कभी बी ए, के बाद।
कभी कर सके नहीं फिर याद।
याद भी करते कैसे सही
कमी ऐसे साधन की रही
बताते दिल का पूरा हाल ।
सभी लेटर थे लिखे कमाल।
लेटरों का आदान प्रदान।
डालता था मुर्दे में जान।
रखें लेटर पुस्तक के बीच।
पढें दिल की बगिया लें सींच।
सभी कुछ छिपे छिपे की बात ।
पकड़ जाने का डर दिन रात ।
याद मुझको, सतीश टाकीज।
जहाँ खुश, होती यह नाचीज।
एक बोतल में पीते कोल्ड।
विचारों में थे पूरे बोल्ड ।।
नहीं चल सके एक ही राह।
पूर्व एम ए के हुआ ब्याह ।
हुई रातें ऐसी रंगीन ।
दें गईं बच्चे प्यारे तीन।
सभी पढ़लिखकर हुए जवान।
सभी के बने मकान दुकान।
सभी की चहल-पहल संतान।
सभी का खुद पर रहा रुझान।
गये यों ही जीवन के साल।
तभी आ गया करोना काल।
उसी में गये पती के प्राण ।
तभी से बहुत दुखी हूँ साँड़।
तुम्हें अब मोबाइल पर देख।
खुशी का लेख रही हूँ लेख।
भले सब बदल गये हैं टेस्ट।
भेजती तुम्हें फ्रेंड रिक्वेस्ट।
कृपाकर कर लेना मंजूर।
बसे हैं वैसे काफी दूर ।
हुआ अब तो कमजोर शरीर।
समय ने तोड़ दिया बेपीर।
बताना अपने पूरे हाल।
कहाँ कैसा आया भूचाल।
सताई गई है मनोरमा ।
तुम्हें तो नई है मनोरमा ।
गुरू सक्सेना
नरसिंहपुर
22/10/22