*पुरस्कार नहीं दिया तो पुस्तकें वापस करो (हास्य व्यंग्य)*
पुरस्कार नहीं दिया तो पुस्तकें वापस करो (हास्य व्यंग्य)
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मैं इस विचार से पूरी तरह सहमत हूॅं कि अगर कोई संस्थान किसी पुस्तक पर लेखक को पुरस्कार नहीं दे रहा है, तो उसे कम से कम ‘सखेद वापस’ की टिप्पणी के साथ पुस्तकें वापस लौटा देनी चाहिए । एक जमाना था, जब संपादकों के पास लेखक अपनी रचनाऍं प्रकाशन के लिए भेजते थे । उस जमाने में टाइप करने की सुविधा बहुत कम थी। लेखक बेचारे अपने हाथ से रचना लिखकर संपादक के पास डाक से पहुॅंचाया करते थे। जिसकी छप गई, उसने तो छपी हुई पत्रिका रिकॉर्ड में सुरक्षित रख ली। पारिश्रमिक भी मिल गया। लेकिन जिसकी रचना नहीं छपी, वह निराश न हो इसके लिए एक व्यवस्था यह थी कि लेखक की हाथ से लिखी हुई प्रकाशनार्थ रचना लौटती डाक से ‘खेद सहित’ टिप्पणी के साथ वापस लौटा दी जाती थी । डाक-खर्च लेखक की जेब से खर्च हुआ लेकिन कम से कम रचना तो वापस आ गई । अब वह किसी दूसरी पत्रिका में प्रकाशनार्थ भेजने के लिए काम आ सकेगी ।
पुरस्कार में आजकल चार प्रतियॉं मॉंगते हैं । प्रकाशक मुश्किल से पचास प्रतियॉं लेखक को देते हैं । उनमें से भी चार प्रतियॉं एक पुरस्कार-संस्थान हड़प ले, तो कलेजा तो मुॅंह को आएगा ही ! लेखक बेचारा दिल पर पत्थर रखकर चार प्रतियॉं लिफाफे में लपेट कर डाक से भेजता है । महीने-दो महीने पुरस्कार मिलने के सुनहरे सपनों में खोया रहता है । जिनको ज्यादा ही पुरस्कार मिलने की आशा रहती है अथवा यों कहिए कि जिन्हें अपनी कलम पर कुछ अधिक ही विश्वास होता है, वह अपने सम्मान-समारोह तक की सुखद परिकल्पना में डूब जाते हैं।
एक दिन सपना टूटता है । पुरस्कृत लेखकों और उनकी पुस्तकों की सूची प्रकाशित होती है और लेखक के सामने यह कड़वा यथार्थ उपस्थित हो जाता है कि पुरस्कार के चक्कर में उसकी किताब की चार प्रतियॉं डूब गईं। यह ऐसा ही है जैसे शेयर बाजार में किसी ने दॉंव खेला और औंधे मुॅंह गिर गया।
उदाहरण चाहे कुछ भी दे दो, लेकिन सच्चाई यही है कि पुरस्कार न मिलने पर लेखक का दिल अपनी चार गॅंवाई हुई पुस्तकों के लिए रोता है । भैया ! पुरस्कार नहीं दे सकते तो न सही, लेकिन ‘सखेद वापस’ की टिप्पणी के साथ हमारी चारों प्रतियॉ़ तो भेजे गए पते से वापस लौटा दो। आप चार किताबें मार कर बैठ गए ! क्या किया जा सकता है ?
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लेखक : रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा
रामपुर उत्तर प्रदेश
मोबाइल 99976 15451