पुनर्पाठ : एक वर्षगाँठ
शीर्षक – पुनर्पाठ : एक वर्षगाँठ
विधा- कविता
संक्षिप्त परिचय- ज्ञानीचोर
शोधार्थी व कवि साहित्यकार
मु.पो. रघुनाथगढ़ सीकर राजस्थान
मो. 9001321438
ईमेल – binwalrajeshkumar@gmail.com
सरस बंधन की वर्षगांठ
हर जीवन का है पुनर्पाठ
नवजीवन की काँट-छाँट
भेद हृदय के बाँट-पाट
नित जीवन में हो वर्षगांठ।
व्रण पड़े जो भी जीवन में थे
नित -नित गहरे होने को थे
उलझे पथ की सरस सरिता
मधु कलरव सी बगिया महकी
सुखद संगिनी बनकर पिंकी।
जीवन के कठोर धरातल पर
सत्य का घेरा जकड़ जाता
उधेड़बुन की सत्ता के फँदे
जीवन झकझोर किये जाता
जीवन अकर्म कहाँ टिक पाता।
‘पुलकित होकर चेतन था जीवन में’
कुसुम बने खिले उपवन में
आशाओं से घन उमड़ आये
चिंता के घेरे जकड़े जाये
बन आये तो वर्षगांठ
यहीं जीवन का पुनर्पाठ।
दुषित हुआ मन-जन पथ-पथ
छूते न दोष जो हो समरथ
समरसता के पथ के साथी
लो निचोड़ जीवन का अमृत
सीख गये तो वर्षगांठ
पढ़ गये तो पुनर्पाठ।
कैसे-कैसे अनिर्मित थे पथ हमारे
लावण्यमयी थे कुछ दैव इशारे।
शर से तीक्ष्ण होते कर्म सखे!
बेंध देते भाग्य-पुस्तक पार सखें।
बस यहीं जीवन में है वर्षगाँठ
है जीवन का पुनर्पाठ।