पुतला
इंसान तो महज एक ,
माटी का पुतला है।
ये बात उसे समझ नहीं आती,
यही कारण उसे जग में,
बार बार रुलाता है।
इंसान का एक पल का,
भरोसा नहीं फिर भी,
मेरा मेरा पुकारता है।
यही कारण उसे बार बार
रुलाता है तभी तो ये सच है,
की इंसान एक माटी का पुतला है।
मान ले तू ये, जान ले तू ये।
इस दुनिया में न कोई रहा है,
न कोई रह सकता है,
याद कर ले उस भगवान को,
क्योंकि वही तुझे पार लगा सकता है।
तू न भूल इंसान तो माटी का पुतला है।