पुण्य आत्मा
पुण्य आत्मा
सुनकर देखो तन के अंदर
कोई दिल अंदर बोल रहा
पुण्य आत्मा जग जाहिर है
सत्य बात को जो खोल रहा
समझ रहा है मिट्टी का मुरत
बस इसी बात पर कायल हूं
मिट्टी का ही मुरत हूं नही मैं
आत्म देव तो अंदर कायम हूं
ढका हुआ हूं जिस आवरण से
उसको ही है तू देख रहा
देश द्रोही और आतंकवादी को
नष्ट-भ्रष्ट करनें तू भेज रहा
नश्वर शरीर न समझ मुझको
अंदर से है कोई बोल रहा
पुण्य आत्मा जो परम पिता है
आत्मज्ञान को है जो खोल रहा
क्यों बुला रहा है मौत अपना
क्यों तन अग्नि में झोंक रहा है
नश्वर देह,अमर है आत्मा
अंदर से कोई बोल रहा है
देश द्रोह आतंकवाद ,गुंडागर्दी
किस कारण तू करता है
अंधकुप , महासागर में क्यों
पाप गठरियां लेके मरता है
सुनकर देखो तन के अंदर
अंदर से है कोई बोल रहा
पड़ा रहेगा तू मिट्टी बनकर
मिट्टी का क्या मोल रहा
डां, विजय कुमार कन्नौजे अमोदी आरंग ज़िला रायपुर छ ग