चंद दोहा
(1)
जीवन अपना वेद सम,किन्तु गुज़रता व्यर्थ।
है जीवन का मर्म क्या,ढूँढ़ न पाते अर्थ।।
(2)
भरा बंधु हर वेद में,जग का सारा ज्ञान।
कहते ऐसा संतजन,हरदम करते गान।।
(3)
जिल्द बनाने में कटा,अब तक जीवन-वेद।
ख़ुद को पर समझे नहीं,इसका बेहद खेद।।
(4)
लिखूँ और क्या वेद पर,समझ न आये मीत।
तड़पे ख़ुद में ही सरस,उर में पलती प्रीत।।
(5)
भरा कृष्ण जी में स्वयं,प्रिय वेदों का सार।
करो नाम जप रोज़ ही,पा जाओगे पार।।
*सतीश तिवारी ‘सरस’,नरसिंहपुर (म.प्र.)
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#स्वरचित_व_मौलिक