पुकार
पुकार
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मैं तो हूं प्यार का नन्हा फूल
हो गई थी क्या मुझसे भूल।।
करने चले अलग टहनी से।
चुभ रहे बन कर तीखे शूल।।
अनचाहा कैसे हो सकती।
मत समझो पैरों की धूल।।
ना जाने कितनी मन्नत से आई,
खुशियों से भर देती दोनों कुल।।
सच बतलाना प्यारी मां!
तेरी क्या हो गई ऐसी मजबूरी ।।
ममता का गला घोंट दिया
क्यों कर रही जिगर से दूरी।।
नानी तो अबतक तुझ पर मरती
तू क्यों नहीं मुझको बचा सकी।।
ऐसा क्या किया था पाप मैंने
जिसकी माफी भी काम न आ सकी।।
पिता तुम भी बतलाना
इतना बेगैरत कैसे हो सकते।।
बच्चे तो हैं भगवान का रूप
उनसे कैसे तुम, छल कर सकते।।
कुछ तो डरो ए दुनिया वालो!
ऐसा करके सुखी नहीं तुम रह सकते।।
__ मनु वाशिष्ठ, कोटा जंक्शन