*पुकारते चलो*
फूंको शंखनाद , नाद पुकारते चलो ।
अंतसा की गन्दगी को ,बुहारते चलो।।
हाथ में हो हाथ , साथ साथ तालियां
बैठे एक डाल पे ,सब बाल बालियां ।।
सपाट रास्तों को भी,खूब निहारते चलो।
फूंको —————————————१
पड़े ना किसी गैर की , कुदृष्टि मान पे
आये नहीं आंच , लेश मात्र जान पे ।
धोके हाथ बैठ जाए , अराति राशियां।
दे दो शून्यता की उन्हें ,मौन फांसियां ।।
ठान -बान- शान –सब , सँवारते चलो।
फूंको—————————————-२
गहन दृढ़ता हो हर , बात बात में ।
गहन आस्था हो , हर गात गात में।
हटे वर्ग भेदभाव, दिखे शाम साम्यता।
दिखे हर हथेलियों में ,विशेष निवेद नम्रता।
निकाल दाग कांख से , खंगालते चलो ।
फूंको——————————————३
बहे नेक गन्ध एक, बैठे संग छाँव में ।
मिले ना बेड़ी बंधना ,किसी के पाँव में।
स्वतंत्र रहे भव्यता , दर हजार पीढियां।
छूती रहें आसमान , मेल रसम सीढियां।
चुभे हुए शूल को , बैठ निकालते चलो ।
फूंको—————————————- ४
उगाओ खेत खेत में ,अखण्डता की क्यारियां।
मनाओ दीप दीप से ,जला– जला दिवालिया ।
प्रफुल्लता की गंध हो , फिर डगर डगर में ।
चांदनी सी चका चौंध हो , घऱ नगर नगर में ।
शाया आसमाँ से सा , तुम उतारते चलो ।
फूंको ——————————————–५