पीर- तराजू के पलड़े में, जीवन रखना होता है ।
![](https://cdn.sahityapedia.com/images/post/45aee53e1d22f51822560fa20d490214_69386e574a0d02cd0e739d19428fd5f7_600.jpg)
पीर- तराजू के पलड़े में, जीवन रखना होता है ।
ध्यान लगाकर मन-कानन में, हर पल तपना होता है ।
सहज नहीं मिल जाते माधव,चंद्र-वदन घन-केशी को –
रोम – रोम से राधा होकर, मोहन जपना होता है ।
अशोक दीप