” पीती गरल रही है “
गीत
जन्म दिया है नारी ने ,
पालनहार वही है !
मातृ रूप में पूज्या भी ,
नारी सदा रही है !!
प्रथम दरश नयना पाते ,
छवि अंकित मनहारी !
छाँह घनेरी ममता की ,
सब कुछ दें बलिहारी !
देती है संस्कार प्रथम ,
पहली गुरु वही है !!
खेल रचाये बन भगिनी ,
सदा कान खीँचे है !
रूप बिखेरे बन वामा ,
घर आँगन सींचे है !
नेह अनूठा भाभी का ,
अँगुरी सदा गही है !!
स्वांग धरे जाने कितने ,
मर मर कर जीती है !
मिला नवल तो धारण है ,
मिले फटा सीती है !
कहाँ सुधा घट मिलते हैं ,
पीती गरल रही है !!
खुले हाथ बाँटा करती !
न्यून शेष पाया है !
जीवन लगे दुपहरी जब ,
घनी करे छाया है !
कठिन पहेली हल कर दे ,
सरल सदैव रही है !
बिना नार के नर आधा ,
हैं परिवार अधूरे !
लगे जगति नारी से है ,
हुए सपन सब पूरे !
जहाँ मिले सम्मान उसे ,
ख़ुशियाँ रीझ रहीं है !!
स्वरचित / रचियता :
बृज व्यास
शाजापुर ( मध्यप्रदेश )