पीढियों के दोहे
पीढियों के दोहे
1.
बार बार मुख देखते, करते कंघी बाल।
खेले, कूदे, संवरे, बदली-बदली चाल।।
2.
सच सच तू दर्पण बता, कैसा मेरा रूप
मैं छाया हूँ तात की, माँ की उजली धूप।।
3.
शीश केश दाढ़ी बढ़ी, मुख देखें सौ बार।
रीझा दर्पण कह उठा, ला दे मुझको हार।।
4.
आई फिर ऐसी घड़ी, चिपकी बिंदी शान।
घूँघट ओढा लाज ने, दर्पण यौवन जान।।
5.
क्या दर्पण को देखना, देखो अंतस रूप।
कहता कब मुखड़ा यहाँ, गई गई अब धूप।।
6.
बोला दर्पण गौर से, सुन मेरी भी बात।
मैं गवाह हर दौर का, वो थी पूनम रात।।
सूर्यकांत