पीडा़
मेरी पीडा़ मेरा धन है !
नहीं बॉटता मेरा मेरा मन !
सूम बने रहना ही बेहतर
खुशहाली मे धर_ऑगन है !
विपदाओं का लम्बा दल_दल !
निकल न पाया अब तक इसमे !
वीहड़ वन मे बेचैनी को
तुम्ही बताऔ कहता किससे !
बहरे कान समीपी मेरे
उस पर भी अन्दर अनबन है !
संबल सही सुखद है लेकिन
तेरा ठीक न मुझमे रहना
रहूं स्वयं मै अपने अन्दर
मेरा परिचय हर पल ढहना !
मेरी अपनी, जीवन शैली
अलग सोच की अलग कहन हैं !
हिरणो का यह बडा़ झुण्ड भी
हिंसक हमले सह जाता हैं !
भय से नतमस्तक है साहस धैर्य यही
कुछ कह जाता है !
सिंहो का प्रतिरोंध करें हम
वन में ऐसी भले चलन है !
विनय पान्डेय
@सर्वाधिकार सुरक्षित