पीड़ा
दिल की पीड़ा में हर रोज अब जल रहा हूँ मैं
प्रेम की आग मे तप के कैसा ढल रहा हूँ मैं
इतंजार करके यह मन दिन रात है तड़पता
तुम्हारे वास्ते शायद स्वयं को छल रहा हूँ मैं
अभिषेक शर्मा
दिल की पीड़ा में हर रोज अब जल रहा हूँ मैं
प्रेम की आग मे तप के कैसा ढल रहा हूँ मैं
इतंजार करके यह मन दिन रात है तड़पता
तुम्हारे वास्ते शायद स्वयं को छल रहा हूँ मैं
अभिषेक शर्मा