पीड़ा का अनुवाद
(लोकडाउन के दौरान मज़दूरों की व्यथा)
हम मज़दूर चले हैं नंगे पाँव साहब
जाने कब पहुँचेंगे अपने गाँव साहब
पीड़ाओं के पंख पहनकर
दुविधाओं की चादर ओढ़े
युगों युगों से हैं रस्ते पर
लेकिन नहीं राह के रोड़े
आज सड़क का कोढ़ नज़र आते हैं तुमको
उत्तर सब मुँहतोड़ नज़र आते हैं हमको
सड़कों पर परिवार हमारा
सड़कों पर घरबार हमारा
सड़कों पर संसार हमारा
सड़कें हैं किरदार हमारा
सर पर सूरज लेकर हम तो रोज़ चले हैं
आग पेट की बुझी नहीं,दिन-रात जले हैं
उल्टे पड़ जाते हैं सारे दाव हमारे
कहीं नहीं पहुँचे हैं घायल पाँव हमारे
अँधियारी रातों की कालिख मल कर मुँह पर
हमने सारी दुनिया को बाँटे उजियारे
कितने महल बनाए हमने
ऊँची ऊँची मीनारें भी
मन्दिर,मस्जिद,चर्च बनाए
दरगाहें और गुरूद्वारे भी
हमने सभी रिसोर्ट बनाए
पुल,सड़कें और नदियाँ नाले
मॉल,चॉल और बाँध बनाए
कार,बार,घर-द्वार,शिवाले
कंप्यूटर से मोबाइल तक
अमेरिका से इजराइल तक
सुन्दर सुन्दर बाग़ बनाए
काँटे ले कर,फूल उगाए
धरती के बंजर सीने को
अपना लहू पिलाया हमने
है किरदार पसीना अपना
वो दिन रात बहाया हमने
तुम जी पाओ,सुख को भोगो
सारा अन्न उगाया हमने
हमने रची मूर्तियाँ सारी
और सभी भगवान बनाए
ईश्वर,ईसा,मूसा ढाले
हमने ही गुरूद्वार बनाए
पुण्यआत्माओं की प्रतिमा
जिन जिन के डंके बजते हैं
हमने वो प्रतिरूप बनाए
जो चौराहों पर सजते हैं
सुख के सब सामान तुम्हारे
दबे हुए अरमान हमारे
तप तप कर तैय्यार किए हैं
बंजर सब गुलज़ार किए हैं
शिक्षा के सारे मन्दिर,तालीमगाह सब
वायुयान,जलपोत और ये सुलभ राह सब
बसें,रेलगाड़ी,रिक्शा,दोपहिया वाहन
छोटी बड़ी मशीनें सब साधन-संसाधन
कौन हमारी मेहनत का सत्कार करेगा
दे कर चार रुपल्ली फिर अहसान धरेगा
आँधी,बारिश,तूफ़ानों से नहीं डरे हम
टूटे फूटे कई बार पर कब बिखरे हम
बस बच्चों को दो रोटी हासिल हो जाएँ
ज़िन्दा रहने की ख़ातिर हर रोज़ मरे हम
हम चिमनी का धुआँ बने हैं राख़ हुए हैं
निर्माणों की नींव बने हैं ख़ाक हुए हैं
कलपुर्ज़े बन गए मशीनों के हम सारे
हम उधड़े पर किए तुम्हारे वारे न्यारे
हमें प्रवासी मज़दूरों की संज्ञा दी है
बंजारे हैं नहीं कोई घरबार हमारा
आज हमारी हालत चाहे जो हो लेकिन
नंगा दिखता है हमको किरदार तुम्हारा
जिनका काम सियासत है वो करें सियासत
पर समाज ने भी हमको क्या दी है राहत
पहले फ़ोटोग्राफ़र को बुलवा लेते हैं
तब ये भद्रपुरुष हमको खाना देते हैं
पटरी,सड़कें,पुल,बाँधों का जाल हमारा
कब सोचा था यही बनेगा काल हमारा
हमको नहीं मार पाई कोई महामारी
आग पेट की है अपने कुल की हत्यारी
हिन्दू,मुस्लिम,सिक्ख नहीं हम नहीं इसाई
हम मज़दूर जात,मेहनत है नेक कमाई
सुनो ध्यान से दुनिया के इन्सान ये सारे
हमने हाथों से ढाले भगवान तुम्हारे
समझ नहीं आता आख़िर में क्या पाओगे
सब कुछ मिट्टी है मिट्टी में मिल जाओगे
देख रहा है वक़्त ध्यान से पाप तुम्हारे
यही बनेंगे नवयुग में अभिशाप तुम्हारे
छोटे मुँह से बात बड़ी कुछ बोल गए हम
अपने ही दिल के छालों को छोल गए हम
मन की बातें कहने का अधिकार है सबको
इसी तराज़ू में शायद सब तोल गए हम
इसीलिए बस हमने ये संवाद किया है
ये मत समझो साहब कुछ अपराध किया है
हाँ पीड़ा के वंशज ठहरे इसीलिए बस
अपनी कुछ पीड़ाओं का अनुवाद किया है
कुछ भी हो हम नहीं भूलते धर्म हमारा
सेवक जो हैं सेवा करना कर्म हमारा
बूढ़े हैं माँ-बाप गाँव में भौजाई है
एक भतीजी है जो काँधे तक आई है
फिर लौटेंगे हम खेतों में बन के सरसों
आज दर्द में हैं लौटेंगे हम कल परसों
अगर पहुँच पाए तो फिर से आ जाएँगे
और तुम्हारे घर आँगन को महकाएँगे
बने आत्मनिर्भर ये भारत देश हमारा
पहुँचा देना साहब तक संदेश हमारा
ये मत कहना हमने वाद-विवाद किया है
बस थोड़ी सी पीड़ा का अनुवाद किया है…😢