पीछे
जिंदगी मुझसे सवाल करती है?
मांगती है जवाब, क्या कहूं ? मजबूर थी, लाचारी थी या सच बताऊँ कि मेरे जीतने में, मेरे अपने लोगों की ही हार थी इसलिए आज पीछे खड़ी हूंँ।
नहीं चाहता था कोई मैं निकालूं उनसे आगे
उनके वजूद को लांघकर, ठेस लगती थी उनके सामाजिक सम्मान को, इसलिए
आज भी पीछे खड़ी हूं।
या कह दूँ कि सब जानते थे
कि कोई बड़ा कोई रुकावट मेरे इरादों को, मेरे कदमों को रोक नहीं सकते थे,
नहीं तोड़ सकते थे मेरे साहस और मनोबल को तो संस्कार नाम की दीवार खड़ी कर दी।
इसलिए आज भी परदे के पीछे खड़ी हूं