*अगर टूटी है पेड़ों से ,तो फिर शाखा न जुड़ती है (हिंदी गजल/गीतिका)*
अगर टूटी है पेड़ों से ,तो फिर शाखा न जुड़ती है (हिंदी गजल/गीतिका)
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(1)
अगर टूटी है पेड़ों से ,तो फिर शाखा न जुड़ती है
घड़ी की सूई बढ़ती है, मगर पीछे न मुड़ती है
(2)
कहने भर की बातें हैं ,कि हिम्मत काम देती है
बिना पर के कोई चिड़िया ,कभी नभ में न उड़ती है
(3)
जो बैठे सिर्फ रहते हैं, परिश्रम कुछ नहीं करते
बुढ़ापा शीघ्र आता है, त्वचा सारी सिकुड़ती है
(4)
जगह देखी न देखा वक्त , माहिर थूकने में हैं
दबी है गाल के भीतर, नहीं सुरती बिछुड़ती है
(5)
महकता फूल खिलता है, कभी फिर सूख जाता है
मनुज की सौ बरस की जिंदगी यों ही निचुड़ती है
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रचयिता : रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा,रामपुर (उ.प्र.)
मोबाइल 9997615451