छाती पर पत्थर /
पल-पल
कठिन तपस्या करके,
बाप ! चला पाता है, घर ।
बासन-भाँड़े,
कपड़ा-लत्ता,
सब्जी-भाजी औ’ राशन ;
ब्याह, पढ़ाई
रोग-दवाई
कर्ज उठाकर, लाए धन ;
अनचाहे
हिस्सों में बँटके,
बाप ! चला पाता है, घर ।
दो टिक्कड़
साफी में बाँधे
और प्याज की ले गठिया ;
भरी दुपहरी
बहे पसीना
जोते मालिक की रठिया ;
सपन सलौने
गिरवी धरके,
बाप ! चला पाता है, घर ।
बेटी को
लेना इस्कूटी,
बेटा चाह रहा मोबाइल ;
ध्यान रहेगा
दादी का चश्मा
मम्मी की स्माइल ;
हर पल
जी-जी के, मर-मर के
बाप ! चला पाता है, घर ।
पर्वत टूटे,
आँधी आये,
कभी,न मन को गिरने दे ;
धीरे से
मसले सुलझाये,
‘तिल का ताड़ न बनने दे’;
छाती पर
पत्थर-सा धरके,
बाप ! चला पाता है, घर ।
पल-पल
कठिन तपस्या करके,
बाप ! चला पाता है, घर ।
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— ईश्वर दयाल गोस्वामी
छिरारी (रहली), सागर
मध्यप्रदेश – 470227
मो. – 8463884927