पिया लाज लागता
झुरझुरी देहिया में कइसन, ई आज लागता,
जनि घूंघटा उठाईं पिया, लाज लागता,,
दुई चार दिन गिनत कटि जइहें समइया,
देह मन सगरी त रउरे हउवे सईंया,,
बथ्थत कपार मोर ऽ, बेहिसाब लागता,,
जनि घूंघटा उठाईं पिया, लाज लागता,,
सुति जाईं ओढ़ि के ओढ़नी चदरिया,
सगरी महीनवा त आवेला अजोरिया,
काहे दो गड़बड़ाइल अस, मिजाज लागता,,
जनि घूंघटा उठाईं पिया, लाज लागता,,
मानी कहनवा सरक जाईं तनिका,
छुई जनि हमके, रहीं तनि फरिका,
मुसुकी राउर बड़ा, दगाबाज लागता,,
जनि घूंघटा उठाईं पिया, लाज लागता,,
– गोपाल दूबे