पिया बिन बीती कैसी रतिया
पिया बिन बीती कैसे रतिया
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पिया बिन बीती कैसी रतिया,
कैसे सब तुम्हे ये सब बताऊं।
सारी रतिया बीती अंखियां मे,
कैसे तुम्हे दिल का दर्द बताऊं।।
एक मिनट बन गई एक घंटा,
लम्बी है गई थी मेरी ये राते।
पिया बिन कैसे काटू ये राते,
किससे करू मै मन की बाते।
पिया बिन इन लम्बी रातों मे,
बार बार बदल रही थी करवटें,
मेरा दर्द बयां कर रही थी
चादर की लंबी लंबी सलवटे।।
चंदा भी ऊपर से झाक रहा था,
देख रहा था मेरे दिल का दर्द
अंखियां मेरी सूज गई थी
बदन हो गया था पीला जर्द।।
ऐसा दर्द किसी को भी न देना,
चाहे भली हो मेरी वह दुश्मन।
मेरा दर्द सुनकर इठला रही थी,
मेरी पड़ोस की एक मेरी सौतन।।
आर के रस्तोगी
गुरुग्राम