पिया बिना कैसे खेलूँ होली
पिया बिना कैसे खेलूँ होली
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पिया बिना कैसे खेलूँ होली,
पिया बिना हुई सूनी होली।
भर पिचकारी रखूँ बगल में,
आग लगी है सूखे चमन में,
सीने है चलती सीधी गोली।
पिया बिना हुई सूनी होली।
हर रंग बेरंग हुआ है फीका,
जयका जुदाई बहुत तीखा,
तंग करती है भीगी चोली।
पिया बिना हुई सुनी होली।
नीला-पीला-संतरी -गुलाबी,
बैरी मनवा खोई कहीं चाबी,
खलती गली मे आई टोली।
पिया बिना हुई सूनी होली।
कैसे सुलझे बिगड़ी पहेली,
याद आती होली हर खेली,
कौन् भरेगा खाली झोली।
पिया बिना हुई सुनी होली।
मनसीरत बैठी दर अकेली,
पास न कोई सखी – सहेली,
कड़वी लगती मीठी बोली।
पिया बिना हुई सूनी होली।
पिया बिना कैसे खेलूँ होली,
पिया बिना हुई सूनी होली।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)