प्रियवर
प्रियवर अपने हाथ से, रचे महावर पाँव।
धन्य हुई मैं तो सखी, पाकर ऐसा ठाँव।।
प्रेम इसी का नाम है, मिटे अहं का भाव।
राधा कृष्णा की तरह, होता जहाँ लगाव।।
स्वप्न भरे सुरभित हृदय, बजते राग-विहाग।
भर लेते प्रिय अंक में, अनुभव लगे प्रयाग।।
गंध पुष्प की साँस में, अधरों पर है राग।
प्रेम ज्योति मन में जगी, खिलने लगा सुहाग।।
करे पिया जब प्रेम से, पत्नी का शृंगार।
निखर उठे नव यौवना, लेकर रंग हजार।।
-लक्ष्मी सिंह