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2 Apr 2022 · 1 min read

” पियरका धोती “

( संस्मरण )
डॉ लक्ष्मण झा “परिमल ”
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सासुर सं विदा भेलहुं ! पियर धोती पहिरय पडल ! मधुबनी मे जानकी धयलहूँ ! संगे रहैथि हमर सार भूलन जी ! बड्ड भीड़ छल ! केहुना सब सामान भीतर केलहुं ! दरिभंगा मे एकरा बदलि दोसर ट्रेन जसीडीह क लेल पकड़य क छल ! समय भेटल ..पियर धोती स्टेशने पर बदलि जींस पेंट पहिरलहूँ ! गोरलगाई मे हमरा टोटल १२५ /- रूपया भेटल छल ! टिकट एकटा फूल आ दोसर हाफ मे पहिने २१/- रुपया लागि गेल छल ! अपना लग ७५ /-रुपया पहिने सं छल ! टिकट ,गोड़लगाइ आ अपन पैसा पाछू वाला पॉकेट मे रखलहूँ ! ट्रेन आयल ..भीड़ मे चढ़ि गेलहुं ..मुदा पर्स गायब ..! ट्रेन सं उतरय पडल ! दिने मे चन्द्रमा सुझय लागल ! सार कें सामान लग छोडि पुलिस लग गेलहुं मुदा कोनो गप्प नहि बनल ! ताहि दिन टेलीफोन सामान्यतः नहि छल ! …संयोगवश श्री लव कान्त झा आ हुनक पुत्र गोपी झा सेहो स्टेशन पर ट्रेन पकड़य लेल घूमि रहल छलाह ! हमरा जान मे जान आयल ! मुदा काज नहि बनल ! अंततः रेलवे पुलिस हमरालोकनि कें अपना बोगी मे ल गेल आ एहि तरहें जसीडीह पहुंचलहूँ ! जसीडीह सं दुमका एक रुपया किराया छल ! दुमका पहुँचि किराया चूका देलियनी ! .पश्याताप भेल ….पियरका धोती कें दरभंगा मे फेरबाक नहि चाही !
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डॉ लक्ष्मण झा “परिमल ”
दुमका

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