पिपासित
तुमसे मिल कर हृदय ने ये जाना प्रिये
कितना मुश्किल है रिश्ता निभाना प्रिये
बारिशों में बदन भीगता ही रहा
पर नयन ज़िंदगी भर पिपासित रहे
हर कहानी बड़े ध्यान से की श्रवण
पर सभी उपनिषद अप्रकाशित रहे
अपनी कोमल उंँगलियों से होगा हमें
पत्थरों की लकीरें मिटाना प्रिये
ज़िंदगी की परीक्षा सिरहाने खड़ी
पर किताबें अभी तक छपी ही नहीं
मेघ यद्यपि मरुस्थल तक आ तो गया
नीर की किंतु बूंँदें बची ही नहीं
होलिकाएँ जलाना सरल है मगर
कठिन प्रह्लाद को है बचाना प्रिये
-आकाश अगम