पितृ स्वरूपा,हे विधाता..!
पितृ स्वरूपा,हे विधाता..!
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व्योम उर सा अनंत विस्तृत,
स्नेह का साम्राज्य तेरा ,
आये थे हम,तेरी कृपा से,
पर ये तो है सौभाग्य मेरा।
स्वप्न चुन-चुन,द्रव्य गिन-गिन,
हसरतें बनाते प्रतिदिन,
कण-कण अवगाहन करके,
लिख गए तू भविष्य मेरा।
पितृ स्वरुपा,हे विधाता !
हम सब का है तू पालनहारा ,
मंद-मंद,पल-पल प्रवाहित,
है धरा पर आशीष तेरा।
सहज सुंदर सौम्य निर्मल,
सुरभि सरिता पुनीत धारा,
कण-कण अवगाहन करके,
लिख गए तू भविष्य मेरा।
धैर्य अनुपम,दृष्टि विहंगम,
स्पर्श से छटे गम का घनेरा ,
मन स्पंदित होता था जब,
मिलता रहा बस साथ तेरा ।
हे गगन के द्युतिअलौकिक,
रब भी नहीं तुझ सा चितेरा,
कण-कण अवगाहन करके,
लिख गए तू भविष्य मेरा।
कारवाँ अब कौन लाए,
अनगिनत उम्मीदों का सबेरा ,
होता नहीं अश्रांत मन अब,
मिटता नहीं क्यूँ तमस घेरा।
खुल रहें हैं भेद ज्यों-ज्यों,
खल रहा अब बिछोह तेरा ,
कण-कण अवगाहन करके,
लिख गए तू भविष्य मेरा।
मौलिक एवं स्वरचित
© ® मनोज कुमार कर्ण
कटिहार ( बिहार )
तिथि – ३० /०४ /२०२२