*”पितृ देव “*
“पितृ देव”
आकाश गंगा नक्षत्र से उतरते, पूर्वज पितर देव बन आये।
विदा हो गए थे जो इस संसार से ,अब पुरखों में शामिल आये।
बीते हुए दिनों की याद दिलाने ,उन गुजरे लम्हों को साथ लाये।
पुरखों के स्वागत अभिनंदन में ,श्रद्धा सुमन अर्पित शीश नवाये।
आँगन बुहारे चौक बना ,चंदन चावल तिल जवां गंगा जल चढ़ाये।
चरण पखारें संकल्प लें, जलांजलि जल तर्पण तृप्त कर जाये।
धूप दीप जला खीर पूड़ी नैवेद्य भोग लगा पूजन थाल सजाये।
श्रद्धा भक्तिमय भाव से मन की ,अभिलाषा पूर्ण वरदान पाये।
आशीष की कामना लिए हुए ,उनकी छाया में सुख शांति पाये।
पितृ देव कामना पूरी करते हुए, जीवन सफल बना जाये।
श्राद्ध कर्म से पितरों की प्रति ,कृतज्ञता प्रकट कर जाये।
पितृ देव प्रसन्न होकर ,सहायता करते हम आशीर्वाद पा जाये।
*”ॐ देवताभ्यः पितृभ्यः च महायोगिभ्यः एव च
नमः स्वधायै स्वाहाये नित्यमेव च नमो नमः ।
देवताओं पितरों महायोगियों स्वधा ,और स्वाहा को मेरा सर्वदा नमस्कार है नमस्कार है ।
पितृ देवताभ्यो नमः
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