पितृपक्ष
हम सभी जानते हैं कि जीवन में पितृपक्ष एक महत्वपूर्ण भूमिका रखता हैं। हम सब पितृपक्ष में अपने जीवन में अपने पूर्वजों की यादों में उनकी तिथि और नाम के साथ-साथ अपने गोत्र वंश के लिए प्रार्थना और पितृपक्ष में दान और पिंडदान और भी तरह-तरह की आयोजन करते हैं और हम सभी अपने अपने जीवन में पितृपक्ष परम्परागत रूप से मनाते हैं या पूर्वजों की याद में करते हैं। आज आधुनिक परिवेश में भी हम सभी की जिंदगी और सोच पितृपक्ष में वहम और हकीकत से झुजती हैं। बस हम सभी अपनी आर्थिक और सामाजिक सोच से इत्तफाक रखते हैं। हम सभी पितृपक्ष में अपने बड़े बुजुर्ग जवान और किसी भी तरह की मृत्यु के साथ-साथ हम अपने जीवन में कुछ ना कुछ सोचते और समझते हैं जिससे हम इंसानियत और मानवता के साथ सांसारिक मोह माया मैं हम कितने पुराण और ग्रंथ को समर्पित भाव से पढ़ते हैं परंतु गीता एक ऐसा धार्मिक ग्रंथ है जिसको पढ़ने से हम सभी की जीवन में मानवता के प्रति आस्था और महत्व बनता है। जहां प्रभु श्री कृष्ण जी ने मानव को संसार से आकर्षण और मोह माया जोकि हमारे चंचल मन की चंचलता के साथ संसार रूपी धन और आनंद में आसक्ति के रूप में रहता है जिसे हम सभी मोह माया ही कहते है।
आओ हम सब पितृपक्ष में एक दूसरे की नियम बातों को सोचते हैं। हम सभी पितृपक्ष में अपनी पूर्वजों को याद करते हैं और तिथि के हिसाब से हम उनका भोजन इत्यादि निकालते हैं। जीवन तो सभी का एक दिन मृत्यु को प्राप्त होगा परंतु हम सभी अपने जीवन में एक दूसरे को समझ में और सोचने का अवसर कहां देते हैं। क्योंकि हम सभी अपने जीवन में वहम के साथ और हम सभी अपने-आपने नियम के साथ अपने पूर्वजों के साथ प्रार्थना करते है और हम सभी जीवन में अपने जीवन काल में अपने कर्म और धर्म सब भूल जाते हैं।कि हमने अपने सगे संबंधियों और माता-पिता जो भी रिश्ते नाते होते है उनके साथ हमने कैसा व्यवहार और कैसा दूर व्यवहार किया था वह सब हम अपने जीवन में कर्म के साथ-साथ भोगते हैं। फिर भी हम जीवन में एक दूसरे के प्रति स्वार्थ फरेब रखते हैं। जिंदगी के रंगमंच में हम सभी के रिश्ते नाते सांसों के साथ जिंदगी के पल और हम मानव समाज जिसको केवल अपने ही अपने दुख और सुख समझ आते हैं। जबकि हमारे जीवन में श्मशान घाट और पितृपक्ष ऐसे दो घटक ईश्वर ने प्राकृतिक रूप में पांच तत्वों के साथ-साथ हम मानव समाज को सत्य और सांसारिक सुख और दुख का महत्व बताया है परंतु हमारे जीवन में आज भी ब्राह्मण समाज के कुछ घटक हमारे जीवन को प्रभावित करते हैं क्योंकि आर्थिक स्थिति के साथ-साथ सभी मानव समाज को आज भी सामानता नहीं है
हम सभी लोग भोजन निकालने के साथ-साथ यह सोचते हैं की अब हमें हमारे कर्मों कि हमारे गलत कार्य की क्षमा मांगने पर हमारे पूर्वजों से शायद क्षमा मिल जाती हैं। क्योंकि हम सभी अपने जीवन में एक बात भूल जाते हैं कि हमारे कारण जो दुःख हुआ वहीं हमारे कर्म बन जाते हैं। और हम सभी जानते हैं कि जीवन में हम सभी एक दूसरे को सहयोग भी नहीं करते हैं। और पितृपक्ष में हम सभी अपने जीवन में स्वार्थ और मन भावों में समझते हैं कि अच्छा बुरा जो कर चुके।
पितृपक्ष में हम सभी अपने जीवन काल में अपने परिवार के पूर्वज जो कि हमारे जीवन में हमसे आशाएं रखते हैं और हमें आशीर्वाद भी देते हैं। जिसमें हमारे जीवन का सच और सुख समृद्धि से जुड़े जीवन को सफल बनाते हैं। इसलिए हम सभी अपने पितृपक्ष में अपने नियम और कायदे से अपने पूर्वजों का आवाहन करते हैं और उनकी पसंद आने वाली चीजों को दान करते हैं। ऐसा कहा गया है कि जो चीज हम दान करते हैं वह उनको मिलती है परंतु पितृपक्ष में गाय कुत्ता और कौवा के साथ साथ ब्राह्मण समाज का भी योगदान रहता हैं। और हमारे देश में हिन्दू धर्म में पितृपक्ष की मानें तब हम सभी अपने जीवन काल में सभी अपने परिवार के अनुसार पितृपक्ष में अपने अपने पूर्वजों की तृप्ति के लिए हम सभी आर्थिक स्थिति के अनुसार पितृपक्ष में काम करते हैं जैसे दान और अनुष्ठान भी कराते हैं परन्तु एक सच तो यही है कि वेदों में पंचतत्व का सच और रहस्य है। आज हम सभी समाज ब्राह्मण समाज के साथ साथ चलता हैं। और ब्राह्मण समाज में सभी ईमानदार और निष्पक्ष ज्ञान रखतें हैं ऐसा भी कभी कभी त्रुटि पूर्ण भी ज्ञान मिलता हैं।
हां हम सभी हिंदू समाज में आज भी किसी की मृत्यु या आस-पास में किसी का गुजर जाना हम सभी अपने समाज में सब कुछ जानते हुए भी हम एक दूसरे से परहेज भी करते हैं जहां जन्म निश्चित है वहां मृत्यु भी अटल सकते हैं जिससे जीवन का सार हम सभी समझ में आता है और हम सभी आज समाज में पितृपक्ष को डर और भय से भी पूजते हैं। परंतु जीवन के किसी न किसी पल या उम्र में हम सभी को एक सत्य से गुजरना या समझना होता है हम सभी मानव समाज को यह सोचना चाहिए की जीवन में हम धनवान हूं या गरीब परंतु कुदरत नहीं सभी को एक समानता का हक दिया है और उसे हक के साथ-साथ हम सभी को एक मानवता के समाज में समान भाव के साथ एक दूसरे के प्रति धार्मिकता के साथ और जन्म मृत्यु के साथ हम सभी को एक दूसरे का मानव समाज के साथ सहयोग करना चाहिए सभी के मन में विश्वास होना चाहिए की जीवन में सभी नर नारी और मानव समाज एक ही तरह से बना है ना कोई बड़ा ना कोई छोटा ना कोई ऊंचा न कोई नीचा है। हम सभी को जीवन में एक दूसरे के प्रति मानवता और सामाजिकता का दृष्टिकोण रखना चाहिए जिससे यह भी एक सच हैं। मालूम होता है कि जीवन में रिश्ते नाते सांसों के साथ होते हैं। और हम सभी जीवन पितृपक्ष को महत्व देते हैं। और अपने पूर्वजों के लिए हम सभी उनसे आशीर्वाद और सुखद जीवन की कामना करते हैं।