पितृपक्ष: सपने में बाबूजी
कल रात जब मैं सोया था,
तब बाबूजी की याद सताई।
यह माह है पितृ पक्ष का,
ठीक समय पर याद है आयी।
हुआ सबेरा जल्दी जल्दी,
नहा धो कर नीर गिराई ।
अक्षत उरद फूल सुगंध,
पितृ चरण में खूब चढ़ाई।
नियत तिथि श्रद्धा से हमने,
अपने सर के बाल मुड़ाई।
बना रहे सम्मान जगत में,
दान दक्षिणा खूब लुटाई।
बाबूजी फिर सपने में आये,
हँसते हुए पीठ थपकाई।
धन्य हुआ वत्स मैं तुमसे,
तूने संस्कारों की लाज बचाई।
पर कुछ पिता आज भी हैं,
कह पानी पानी मर जाते हैं।
और अपनी संतानों हाथों,
चावल रोटी नहीं पाते हैं।
बहुत से तात बुढ़ापे में भी ,
सड़कों पर बैठ के खाते हैं।
बिखरे बाल वसन मैले में,
वृद्धाश्रम वाले ले जाते हैं।
एक दिन सबको तात है बनना,
सबको बूढ़े हो जाना है।
करुण भाव बाबूजी बोले,
यह सबको समझाना है।
हो उपेक्षित वृद्धजन जो,
घुट घुट कर मर जाते हैं।
जग के ऐसे संस्कारों को,
देख देख कर शरमाते हैं।
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अशोक शर्मा,कुशीनगर,उ.प्र.