पितृत्व की छाव
मेरे पापा
ना ही कभी डांटा ,तो ना ही कभी मारा
हर कमी को उन्होंने प्यार से है संवारा
ऐसे हैं मेरे प्यारेपापा
डांटती कभी तो मां ,तो मां की डांट से था बचाया
डांट से बचा ,मुझे गोद में उठा, वह लाड और पुचकार है खूब हंसाया
बिठाअपने कांधे पर,पूरा बाजार है घुमाया
देकर अपनी पितृत्व की छांव, इस जहां की कड़ी धूप से है बचाया
दिए मुझे इस आसमान में उड़ने के लिए पंख, दी मुझे एक आशाओं और हौसलों की उड़ान
बस भरनी है इस उड़ान को, करने हैं वह सपने पूरे
जो देखें अपने पापा की आंखों में
जिसने हमें हर छोटी से छोटी खुशियां देने के लिएअपने हरदर्द को छुपा लिया
पर अपने उस दर्द को अपने चेहरे की हंसी के पीछे दबा दिए
** नीतू गुप्ता