# पिता …
# पिता …
घर की कुछ/सारी ,
जिम्मेदारियों को संभालता ,
करता सारी व्यवस्था
जीवन निर्वाह का …!
चाहे वो फकीरा हो
या हो वो लखपतिया …!
चौके के एक कोने में
दुपके बैठा देखता
बड़े ही तसल्ली से
अपने-अपनों को
रात का खाना खाते हुए
एक साथ बैठे हुए …!
छुट्टी के दिन ,
घर से बाहर निकलते ही
कहां जा रहे हो …?
बड़े ही सहजता से
समझ सकते हो ,
कौन हो सकती है…?
और तो और
साथ में ये लेते आना ,
वो लेते आना …!
छिपा होता है ,
उसके अंदर एक डॉन
अपनी बेटी के लिए
बनता है वो ,
अपने बेटे का लंगोटिया …!
इन बातों से बेखबर ,
घरवाले समझते उसको
कोल्हू का बैल , गधा
और जाने क्या-क्या …!
दुनिया में दुनियादारी
के सिक्के चलाने ,
कैसे-कैसे रूप धरे ,
बनता है वो बहिरूपिया …!
आम चूसता हुआ वह ,
उन सबको लगता ,
पिता तो आज-कल के
होते हैं परम चुतिया …!
चिन्ता नेताम ” मन ”
डोंगरगांव (छ. ग.)