पिता
शीर्षक-पिता
जीवन भर बोझा ढोता है।
अक्सर सुख से कब सोता है।।
सीने में दफनाता हर गम।
कभी न खुलकर वह रोता है।।
हर विपदा के आगे वह तो।
हरदम ढाल बना होता है।।
बन जाये सुखदायी कल तो।
अभिलाषा मन की बोता है।।
आ जाती कैसी भी मुश्किल।
यह आपा कभी न खोता है।।
जीवन की नैया में अक्सर।
यह खाता रहता गोता है।।
माँ ममता की शीतल छाया।
लेकिन पिता कर्मफल जोता है।।
संतोषी देवी।