पिता
याद मुझको पिता की रुलाती रही
आंख भी अश्रुधारा, बहाती रही।।
जिनकी आवाज से हम तो सहमे सदा
उनकी आवाज कानों में आती रही।।
डांटते थे मगर खूब समझाते वो
सीख उनकी सदा, पथ दिखाती रही।।
सहते जो कष्ट थे, नित हमारे लिए
उनकी तस्वीर वो याद आती रही।।
जान लेते थे वो, क्या जरूरत हमें
याद बचपन की ,दिल को सताती रही।।
बन के आना पिता,फिर से जग में मेरे
‘दीप’वाणी यही, गुन गुनाती रही।।
✍️प्रदीप चौहान’दीप’