हथियार बनाता हूं।
मैं झरने सा बहकर ही
कही भी धार बनाता हूं।
जमाने से अलग अपनी,
इक पहचान बनाता हूं।।
मैं पंछी सा उड़ता हूं ,
न अब घर बार बनाता हूं।।
अपने अंदाज का भी मैं,
नया किरदार बनाता हूं।
समझकर यूं अदना सा कवि,
न मुझपर वार करना तुम ।
मैं अदनी सी कलम को ही
बड़ा हथियार बनाता हूं।।
© अभिषेक पाण्डेय अभि