-पिता
पिता का प्रेम दिखाई नहीं देता
क्योंकि वो ईश्वर की तरह ही होता,
पर दिखाई देती उनकी नसीहत,
कभी शूल सी लगती कभी फूल- सी
लेकिन राह सही हमको बताती
ऊपर से नारियल की भांति,
कठोर, अंदर से धवल नरम रहते
पिता की डांट, दुलार और अधिकार
हमें उन्नति के शिखर पर पहुंचाती
खुद दुख सह लेतेपर हमारी खुशियों
उनकी मुस्कान बन जाती
जिन्दगी की राह में चलते -चलते
जब कभी ठोकर लग जाती है
पिता ही है जो हमारा हाथ थामे रखते
पुचकार कर गले लगाते,
गलती पर माफ कर देते
मंजिल कैसे पहुंचे वो भी समझाते।
– सीमा गुप्ता अलवर