पिता
21.6.2020
खेमकिरण सैनी
बेंगलूरु
पितृ दिवस के उपलक्ष्य में
अपने स्मृति शेष पिता की याद में-
? पिता की याद?
कहते हैं नहीं है सबल अवलंब
दुनिया में कोई पिता सरीखा,
समानार्थक शब्द कुछ मिले पिता के
पर ‘पिता’ का पर्याय न कोई दिखा।
जगतपिता ने छीन लिया
बचपन में मुझसे मेरा पिता
पितृस्नेह से वंचित यह जीवन
पाकर सबकुछ भी है कुछ रीता।
याद नहीं है कब चूमा था
मेरे पिता ने मेरा माथा,
‘पिता’नाम की नाव सहारे
पार हो गई जीवन गाथा।
अल्पायु के अपने जीवन में पिताजी
आपने लोगों का दिल था जीता,
संघर्ष और कर्मयोग सिखाया
समझाई हमको भगवद्गीता।
सब्र और संस्कार का पौधा
अपनी गरीब कुटिया में रोपा,
याद मुझे है मेरे पिता ने अनजाने में
अपना व्यक्तित्व हम सब पर थोपा।
बीच भँवर में छोड़के नैया
पिता तोड़ गए हमसे नाता,
हम गरीब असहाय बच्चों को
बहुत रुलाया है तुमने विधाता!
बड़ी गृहस्थी, ज़िम्मेदारी का बोझ भारी
ढोती रह गई मेरी महतारी,
पिता के उजड़े चमन को
बनाया उसने खिली फुलवारी!
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