पिता
जब से पिता बना हूं, मुझको
होश तभी से, आया है ।
कैसे हुआ मैं, इतने वर्ष का
आज समझ में, आया है ।।
पेड़ की तरह ,छाया देता है
पिता होता एक, साया है ।
मिले कोई भी, जिम्मेदारी
उसने खूब, निभाया है ।।
बेटी का ,जब बाप बना तो
ऐसी ,प्रीत निभाई थी।
बेटी को मैं ,सफल बनाऊँ
कसम उसी दिन, खाई थी ।।
बाप ने बच्चों को, कभी ना
आधी नींद ,जगाया है ।
खुद सोया , टूटी खटिया पर
बच्चों को , बिस्तर दिलाया है ।।
बच्चों की, उंगली पकड़-पकड़ कर
चलना उन्हें ,सिखाता है ।
चोट लगे जब, बच्चे को तो
दर्द ,उसे हो जाता है ।।
दिन भर करता ,मजदूरी वो
थका साँय को ,आता है।
फिर बच्चों को, खेल- खिलाएं
शिकस्त नहीं, दिखलाता है।।
नई कहानी उन्हें ,सुना कर
बच्चों का मन, बहलाता है।
नए अनुभव, सिखा-सिखा कर
परिपक्व , उन्हें बनाता है ।।
अपने बच्चों की ,शादी में वो
कर्जदार ,हो जाता है।
आंख में आंसू ,एक ना लाए
सारी, रीत निभाता है।।
बच्चा बनता, जब अफसर तो
खुशी से फूल ,वह जाता है।
बाटें मिठाई, घर- घर में
दुख- दर्द ,भूल वह जाता है।।
फिर भी, पता नहीं क्यों
ऐसा दिन भी, आता है ।
अपने हो जाते, बेगाने ।
वह, दर- दर की ठोकर खाता है ।।
पिता बनना है, सबको एक दिन
समझ नही क्यों आता है ।
चरण पकड़ लो, अपने पिता के
जग से, क्यों शर्माता है।।