पिता
बैठा लेता था अपने कंधो पर,
थक जाता जब चलते चलते।
बांह पकड़ कर मुझे संभाला,
ठोकर खाकर गिरते गिरते।
बारिश में छतरी बन जाता,
धूप में वो बन जाता बादल।
मेरी हर परेशानी का उससे,
मिल जाता था मुझको हल।
हर ख्वाहिश को पूरा करने,
कठिन परिश्रम करता था वो।
चेहरे पर मुस्कान लिये पर,
दिल में दर्द को रखता था वो।
हम लोगों के कल के खातिर
भूल गया वो अपना आज,
खुद को सादा जीवन देकर,
पहनाया हम सबको ताज।
उसका ऋण न चूका सकेंगे,
चाहे पूरा जीवन दें बिता।
खुश नसीब होते हैं वो लोग,
जिनके पास होते हैं “पिता”।