पिता
उसकी बाजुओं में था जोर,
उसका सीना था फौलादी।
डटा रहा वह निर्भीक,
लड़ता रहा हर तूफान से।
डूबती कश्ती का माजी बन,
लाया सफीने को साहिल तक।
उसके मेहनत का पसीना टपका,
तो कीचड़ में खिला कमल।
सोने पर हुआ सुहागा,
कोयले से निकला हीरा।
जागा वह सारी रात,
तब अंधेरों को मिटाते हुए,
हुआ आगाज एक नई सुबह का।
तपता रहा वह सूरज की तरह,
जलता रहा वह दीपक की तरह।
उज्ज्वल बना भविष्य बच्चों का,
हुआ संतोष तब एक पिता को,
जब चमका सितारा मेहनत का।