सत्यबोध
मैने जिन्दगी के हर सफे को पलट करके देखा!
जो अब तलक न कर सका उसे झट करके देखा!!
इसी उलट-पलट मे न जाने कब जिन्दगी चुक गई?
दोस्त ज़नाजे मे जो आए तो मैने उठ करके देखा!!
किसी को मेरे जाने गम नही,न कोई चेहरे शिकन!
हुई खामख्वाह जिन्दगी बर्बाद, पलट करके देखा!!
‘बोधिसत्व’को तब जाकर हुआ सत्य का यह बोध!
बेमानी वक्त बाजीगरी, सिलवटै पलट करके देखा!!