पिता
पिता,पिता जीवन की धूरी है ।
पिता,पिता जीवन मे बहुत जरुरी है ।।
पिता धरती पर परमेश्वर का अक्श हुआ।
जो ना टूटे ,ऐसा विकट शख्स हुआ। ।
एक टूटी चप्पल में जो मीलों का सफर तय करता है ।
स्वयं की इच्छाओं को मार,परिवार का पौषण करता है ।।
बच्चो की चाहते उसकी पहुँच से बाहर होती है
उधार के कुछ सिक्को से वो भी पूरी होती है ।।
जिन हाथो में दमखम था,वो आज कांपते रहते है।
रहे शान्ति कैसे भी वो चुपके चुपके सहते है ।।
दो कपड़ो में जिन्होने अपना जीवन काट दिया।
बच्चे कहते है अब,की क्या अनोखा काम किया।।
उन थकी आँखो में अब बस सम्मान की चाहत रहती है ।
कोई उनसे भी हाथ पकड कर पुछे की मन में उनके क्या इच्छाये रहती है ।।
माना आँखो मे उनके जाले है,लेकिन वो अब भी सबके रखवाले है ।
परिवार के लिये बहुत बलिदान किये।
उनकी जितनी शक्ती थी सब कुछ परिवार पर वार दिये।
हाथ कांपते है उनके और आखे भी पथराई है ।
भाव शून्य चेहरा है अब,और हा उनके कोहिनूर से भाई है ।।
चाहत उनकी इतनी सी की उनको उचित सम्मान मिले,
पर हालत ऐसी है की परिवार मे ही वार मिले।।
खुश है हम की हम पर एक विशाल वृक्ष की छाया है ।
उस गगन से उतर कर कोई फरिश्ता आया है कोई फरिस्ता आया है।।