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6 Jun 2022 · 1 min read

पिता का दुलार

सादगी का जीवन एक उजाला,सादगी से ही लिख डाला।
पिता के प्यार वं आशीर्वाद संग बचपन की यादों का यह ख़ज़ाना।

सुबह का पल,सुई की टिक टिक,अटकी पाँच पर,
बचपन से बढ़ते तक,याद है अब तक।

पकड़ी गर्दन,नींद में हुई हलचल,
दूध से भरा गिलास,गटगट की आवाज़,
पिलाया और सुलाया।

लाड़ली (लाडलियाँ) भूखी,दिन चढ़ आया,
माँ ने फरमाया।
पापा को ख़याल आया एवं रूटीन यह बनाया।

यह थी जीवन की मिठास,जिसने नींद से जगाया,
पिता का प्यार उमड़ उमड़ कर आया।
वो एक दूध का गिलास, मन तन की शक्ति का साथी,
पिता जी ने बचपन में गर्दन पकड़ कर उठाया वं पिलाया॥

पिता जी…
आशीर्वाद बना रहे, उमर का पड़ाव बढ़ता रहे।
स्व-रचित ✍🏻
सपना अरोरा
थाइलैंड

Language: Hindi
271 Views
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