पिता
मुसल्सल ग़ज़ल-
रहे मुस्कान चेहरों पर तो अपनी हर ख़ुशी दे दी
हमारे हो हसीं लम्हे पिता ने ज़िंदगी दे दी
कहीं ये वक़्त मुझको छोड़ कर आगे न हो जाये
तभी मेरी कलाई के लिए अपनी घड़ी दे दी
जो देखी प्यास होठों पर हमारे आपने जिस दम
लबों1 पर फिर हमारे ला के इक पूरी नदी दे दी
बचाया है मुसीबत से लड़े हर एक मुश्किल से
शजर2 सा धूप में रहकर हमें छाया घनी दे दी
‘अनीस’ अब राह में क़ाइम रहेगी तीरगी3 कैसे
रहे रौशन सफ़र तो आँख की भी रौशनी दे दी
– अनीस शाह ‘अनीस’
साईंखेड़ा म प्र
मो. 8319681285
1.ओठों 2.पेड़ 3.अँधेरा