पिता
जो नजारें खुद कभी न देख सके,
वो कंधों पर बिठाकर हमें दिखा देते हैं,
जो सबक गुरुजी न सिखा सके ,
वह बातों ही बातों में सिखा देते हैं।
अक्सर हमसे प्यार से पेश आते हैं,
कभी-कभी आंखें भी दिखाते हैं,
उन्हें मालूम है कब क्या करना है,
तभी तो सब कुछ सही सही कर पाते हैं।
अपनी ज़रूरतों पर पर्दा डालकर,
वो हमारी ख्वाहिश पूरी करते हैं,
पूरे घर को अच्छे से संभाल कर ,
बड़ी मजबूती से बांध लिया करते हैं।
घर चलाने को अक्सर हमसे दूर चले जाते हैं,
हमें खुश रखने को लाखों गम सह जाते हैं,
डराते हैं , धमकाते हैं, आंखे भी दिखाते हैं,
पर लगती है चोट तो मरहम भी लगाते हैं।
अक्सर बदन में दर्द लिए वो कमाने जाते हैं,
तब जाकर अपने बच्चों को खाना खिला पाते हैं,
वो कभी हमारी तरह शिकायत नहीं करते हैं,
हो चोट कितनी भी गहरी वो आह तक नहीं भरते हैं।
–तारा लामानी
गोवा