पिता
पिता की याद
आज आपके जाने के बाद
जब पहली बार आई मायके
नहीं रोक पाई अपनी आंसु
हर पल ऐसा लगा मुझको
आप कही न कही से मुझे बुला रहे हो
मन ही मन मैं घुटते रही
चारो तरफ आपको ढूँढ़ती रही
पर किसी से कुछ भी कह न सकी
हाँ!आज आपकी हर वो बात याद आई
जो आप अक्सर मुझसे किया करते थे
आपके कमरे में बैठ घण्टों
आपके हर चीज़ को छुआ मैने
माँ से छुप छुप कर कई बार रोई
और जब भी रोई आपको अपने पास पाया
पर सच्चाई तो ये थी आप पास थे ही नहीं
अभी भी लिखते हुए आँखें भर आई
पर अपने मन की बात किसी से नहीं कह पाई।
भावना कुमारी, दलसिंहसराय,समस्तीपुर