पिता है मेरे रगो के अंदर।
मेरी धरती मेरा अम्बर,
मेरी सृष्टि मेरा समंदर,
बनके लहू बहते है मुझमें,
पिता है मेरे रगो के अंदर।।
सर से लेकर पांव तक,
धूप से लेकर छांव तक,
पिता मेरे है जीवन में,
शहर से लेकर गांव तक।।
रात के तारे दिन के उजियारे,
पिता मेरे है जग में सबसे प्यारे,
नित वंदना मैं उनकी करता हूं,
ईश्वर जैसे लगते पिता हमारे।।
कितना परिश्रम करते है,
किसी विपत्ति से ना डरते है,
लालन पालन में जीवन भर,
परिवार के वो लगे रहते है।।
तन मन से शक्तिशाली है,
लड़ने में वो बलशाली है,
कभी ना डरते जीवन से,
पाकर उनको हम भाग्यशाली है।।
कुछ लघु कुछ दीर्घ से,
हिमालय पर्वत के शीर्ष से,
मेरे दुःख हर लेते शीघ्र से,
मेरी चक्षु के पिता हैं नीर से।।
मेरी धड़कन के धीर अधीर है,
मेरे जीवन के सबसे करीब है,
उनके बिन जीवन निरर्थक है,
मैं आत्मा पिता मेरे शरीर है।।
पिता मेरे सम्मान है,
स्वाभीमान अभिमान है,
पिता मेरे जग में श्रेष्ठ है,
मेरे लिए पिता भगवान है।।
ताज मोहम्मद
लखनऊ