पिता है तो लगता परिवार है
पिता है तो लगता परिवार है।
वरना दुनिया में सब बेकार है।।
पिता है तो सोने में सुहागा है।
वरना सारा परिवार अभागा है।।
पिता परिवार की धन दौलत है।
घर में सब कुछ उसकी बदौलत है।।
पिता परिवार की रीड की हड्डी है।
जैसे शरीर में पीठ वाली हड्डी है।।
पिता बाहर गर्मी में जब जलता है।
तब कही घर का चूल्हा जलता है।।
पिता है तो सारे खिलोने अपने है।
पिता नही है तो ये कोरे सपने है।।
पिता है तो घर में सब सुविधाए है।
पिता नही घर में सब दुविधाए है।।
पिता है तो घर की सजावट है।
बाकी सब तो घर की बनावट है।।
पिता के संचालन से घर चलता है।
वरना घर दुविधा में ही फंसता है।।
पिता है तो परिवार के ठाठ बाट है।
पिता नही तो मिलेगी टूटी खाट है।।
पिता है तो परिवार की छत व दीवार है।
वही तो परिवार का असली चौकीदार है।।
आर के रस्तोगी गुरुग्राम