पिता से मेरी पहचान
पिता से मेरी पहचान
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मुझको इस धरा पर लाकर,
दी है एक अमूल्य पहचान।
जगत में नाम रोशन कर ,
में समझूं अपनी ही शान।
पिता से मेरी पहचान—
खेल जगत में छाए रहे,
बनकर भारत का ताज।
जन-जन का कल्याण कर,
बने सभी के प्रिय तुम आज।।
पिता से मेरी पहचान—
मुझको ज्ञान का पाठ पढ़ाकर,
सागर सा भंडार भरा ।
शिक्षा की अलख जगाकर,
मुझको जग में विख्यात करा।
पिता से मेरी पहचान—
मुझको इस धरा पर लाकर
दी है एक अमूल्य पहचान—
सुषमा सिंह*उर्मि,,
कानपुर