पिता सा पालक
आज मैं पिता के साथ-साथ
पालक भी हूँ अपनी संतानो का,
कल मैं सिर्फ एक पिता,
होकर ही रह जाऊंगा…
जब वो निकलेंगे जीवन पथ पर…
कुछ पाने को कुछ कमाने, तब,
उनका पालक बदल जाएगा,
जैसे कि मेरा बदल गया…
तब उनकी मांगे, उनके कर्म,
उनकी इच्छाऐें और दिनचर्या,
अधिकारिक नहीं रह पायेंगी,
नियोक्ता के आश्रित हो जांऐंगी…
जहां जीवन की इच्छाऐं,
परत दर परत छनती हुयीं,
वजन के अनुसार, समय देख,
डर से कंपकपाती प्रकट होंगीं…
क्योंकि तब सुनने वाला,
व्यवहारिक पालक के सिवाय,
उनका और कुछ न होगा,
उनकी खुशी से उसका,
कहीं कोई सरोकार ना होगा…
वह सिर्फ उनके द्वारा किये,
स्वीकार्य कर्मों के आधार पर,
केवल उनका ‘पालक’ होगा….
वो मेरी तरह, मेरे पिता की तरह,
भावनाओ का पोषक नहीं होगा…
जो उनकी मर्जी, उनके सपने,
उनकी मांगे, उनकी खुशियों,
उनकी दिनचर्या को वैसे ही,
स्वीकार कर ले..जैसा वो चाहें…
वो केवल मासिक वेतन देने वाला,
सर्वथा व्यवहारिक पालक होगा,
किन्तु एक पिता सा पालक,
वो कभी नहीं होगा..कभी नहीं होगा….
©विवेक ‘वारिद’*